बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता “फास्ट फूड कल्चर”
भारत जहां एक ओर विविधताओं में भी एकता का देश है वहीं विविध भोजन कल्चर के साथ पौष्टिक भोजन के लिए भी जाना जाता है। बिहार का लिट्टी चोखा, गुजरात के ढोकला, खांडवी, थपेरा, खाखरा, राजस्थान की बाजरे की रोटी, दाल-वाटी, चूरमा-लड्डू, घेवर, कचौरी, भोपाल के कबाब और मुगलई, हरियाणा की लस्सी, बाजरे-मक्के की रोटी, सरसों का साग, कढ़ी, लप्सी, कोलकाता के रसगुल्ले, असम का खार तो वहीं डोसा, इडली, उपमा, सांभर, पोंगल, रसम इत्यादि से भारत के दक्षिणी छोर की पहचान होती है। लेकिन भारतीय थाली में आज वेस्टर्न कल्चर अपना पैर पसारने से पीछे नहीं हट रहा। देश में जहां इन भोज्य पदार्थों को बढ़ावा मिलना चाहिए था, भारतीय संस्कृति को और उजागर करना चाहिए था वहीं हम सभी रहन-सहन से लेकर खान-पान तक विदेशी लाइफ स्टाइल में शायद ही पीछे हट रहे हैं। लेकिन यही वेस्टर्न फास्ट फूड कल्चर भारतीय थाली तक पहुंचकर बच्चों और युवाओं के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ कर रहा है। भारत के विभिन्न राज्यों के प्रसिद्ध पकवान शायद ही लोगों को पता हो लेकिन पिज्जा, बर्गर, मोमोज, चिली-पोटैटो, चाऊमीन, कोल्ड ड्रिंक इत्यादि की दुकानें आज बड़े शहर से गांवो तक भी पहुंच गई हैं और शायद ही इन भोज्य पदार्थों के नाम कोई न जानता हो। गांवों में आज भी बेहतर चिकित्सा दुर्लभ है। छोटी से छोटी समस्या के लिए लोगों को शहर के लिए रवाना होना पड़ता है लेकिन भारत का फास्ट फूड कल्चर आज गांवों में आ चुका है ।