लाॅकडाउन का वायुगुणवत्ता पर प्रभाव
कोरोना के बढ़ते प्रभाव को देख ,24 मार्च 2020 को देश में राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन लागू हुआ ।महामारी की शुरुआत के समय एक सबसे महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला वह था वायु की गुणवत्ता में सुधार ।देश की राजधानी दशकों से खराब वायुगुणवत्ता के कारण अक्सर खबरों मेे रहती है लेकिन महामारी के दौर ने पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ पर विचार करने पर हमें मजबूर किया।
सीपीसीबी ने लाॅकडाउन के पहले चरण (25मार्च-15 अप्रैल2020) में वायुगुणवत्ता में आए परिवर्तन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की ।
रिपोर्ट के मुताबिक,दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान वाहनों का इस्तेमाल बहुत कम हो गया जिससे वायुगुणत्ता में ही नहीं बल्कि मौसम में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला। वातावरण में पीएम2.5 में 46% की कमी, पीएम10 में 50% की कमी आई। लॉकडाउन के दौरान वाहनों पर प्रतिबंध होने से लॉकडाउन के पहले की तुलना में वातावरण में एनओ2 के लेवल 46% की कमी और कार्बन मोनो आक्साइड 37 % की कमी देखी गई। ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रीयल सेक्टर में भी लाॅकडाउन के कारण काम की गति धीमी होने से बेन्जीन रासायनिक पदार्थ के दो प्रमुख स्त्रोतों में बाधा आने से वातावरण में बेन्जीन स्तर में भी 47% की कमी आई।
हालांकि की सल्फर डाई आक्साइड के स्तर में सिर्फ 19% की कमी देखी गई शायद इस वजह से कि दिल्ली में 70% सल्फरडाई आक्साइड का उत्पादन दिल्ली के चारों ओर स्थित पावर प्लांट से होता है और लाॅक-डाउन के दौरान इन पावर प्लांटों का संचालन हो रहा था। इसके अलावा दिल्ली में एसओ2 उत्सर्जन के रेस्तरां और इंडस्ट्री भी स्त्रोत है लेकिन महामारी के दौरान शायद ही इनका संचालन हो रहा था। वैसे भी दिल्ली में रेस्तरां और इंडस्ट्री अब कोल के स्थान पर अन्य कम प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ा रहे है।इसलिए पावर प्लांट ही एक मात्र ऐसा स्त्रोत प्रतीत होता है जो दिल्ली की एसओ2 के स्तर को बढ़ाने में सहायक है।
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