मैं आयुष्मान (दीर्घायु) क्यों न हो सका?

हमारे स्कूल, काॅलेज  से लेकर विश्वविद्यालय तक एक आयुष्मान (नाम) जरूर होता है जो कभी आयुष्मान (दीर्घायु) नहीं हो पाता। आज एक ऐसी ही कहानी पेश है एक लड़के आयुष्मान की।

आयुष्मान एक छोटे से शहर का रहने वाला था लेकिन उसके सपने बहुत ही बड़े थे। उसके पिता हलवाई थे और वह यहीं चाहते थे कि बेटा आगे का कारोबार देखे ना कि अपने बड़े सपनों का महल बनाए।आयुष्मान बारहवीं पास कर चुका था एक छोटे से शहर में अच्छी शिक्षा न मिलने के बावज़ूद गणित, भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान में उसकी अच्छी पकड़ थी वह हर समय अपने किताबों से घिरा रहता था। जिस उम्र में लोग अपने सहपाठी के साथ फिल्में देखना, मौज मस्ती करना पसंद करते आयुष्मान को केवल  पढ़ने की ललक रहती थी। उसकी बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग के लिए सर्वश्रेष्ठ संस्थान आईआईटी से पढ़ने की चाहत थी और वह आईआईटी के प्रवेश परीक्षा के लिए जुट गया था लेकिन घर वाले उसको मुर्ख समझ हर बार कारोबार में हाथ बंटाने का ही ताना देते थे। आयुष्मान की जिद्द और सपने के आगे उसने घरवालों की आलोचना को नजरअंदाज रखा। बस अपने सपने को सच करने में जुटा रहता था। आयुष्मान ने प्रवेश परीक्षा तो पास कर ली लेकिन उसे आईआईटी नहीं आईआईएसईआर ओडिशा में एडमिशन मिला। आयुष्मान उस काॅलेज में जाना नहीं जाना चाहता था और खुद को एक और अवसर देकर आईआईटी में ही एडमिशन लेना चाहता था। घरवालों ने फिर से उसके इस फैसले को गलत समझा कर कारोबार में ध्यान देने की बात कही फिर भी आयुष्मान ने दोबारा प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और इस बार भी उसको आईआईटी में एडमिशन के बजाय एनआईटी में प्रवेश मिला। आयुष्मान ने घरवालों की आलोचना से बचने के लिए एडमिशन तो ले लिया लेकिन मनचाहा कॉलेज न मिलने पर उसने सेमेस्टर की परीक्षा में कठिन परीश्रम करके कालेज बदलने का निर्णय किया।

उसी दौरान कोरोना महामारी की पहली लहर आ चुकी थी। सभी संस्थान बंद हो चुके थे और बच्चों की घर से ही आनलाइन पढ़ाई करने की शुरुआत हुई लेकिन अब आयुष्मान के लिए आए दिन अवहेलना झेलने की भी शुरूआत हो चुकी थी। आयुष्मान के परिजनों को यही लगता कि इस पढ़ाई में बस पैसे बर्बाद हो रहे। आयुष्मान इन सब बातों के बावज़ूद अपने लक्ष्य से डगमगाया नहीं और अच्छे मार्क्स लाकर काॅलेज बदलने के लिए लगा रहा।

उसने परीक्षा दी लेकिन अब जो कुछ होने वाला था वह विचार करना भी आयुष्मान के बारे में अविश्वसनीय था। एक प्यारी सी मुस्कान लिए अपने अंदर आलोचनाओं का तुफान भरे आयुष्मान अपने दुखों के सागर से उस दिन उबर नहीं पाया जब परीक्षा में अच्छे नंबर आने के बावजूद उसका काॅलेज बदलने के लिस्ट में नाम नहीं था। आयुष्मान का दूसरी लिस्ट में नाम आ भी चुका था लेकिन आयुष्मान अब सुकुन और खुशी को गले लगाने के बजाय मौत को गले लगा चुका था। उसके आलोचना सहने और कड़ी मेहनत करने का धैर्य उस दिन टूट गया और उसने मौत को गले लगा लिया। यूं तो होते है दुनिया में लाखों आयुष्मान लेकिन हर कोई आयुष्मान नहीं होता। इस दुनिया में लाखों ऐसे आयुष्मान हैं जो कठोर परिश्रम के बावज़ूद उन्हें उस स्तर की सफलता नहीं मिलती जो उन्हें मिलनी चाहिए लेकिन आज के मानसिक अवसाद के बढ़ते समय में एक अभिभावक, भाई-बहन या दोस्त होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने आस-पास के लोगों को सकारात्मक रखे और उनके परिश्रम की सराहना करे चाहे सफलता बड़ी हो या छोटी। 20 दिसंबर 2021 को शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान द्वारा लोकसभा में पेश किए गए डेटा के अनुसार 2014 से 2021 के बीच देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी व केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के 122 बच्चों ने आत्महत्या की। यह निराशाजनक है जब एक भी बच्चा मानसिक अवसाद की वजह से आत्महत्या करता है कभी उसे अपने ही परिजनों का प्रोत्साहन नहीं मिलता तो कभी और अधिक सफल बनने की ललक उसे जीने नहीं देती ऐसे में जरूरत है कि सबका ध्यान मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से जाना चाहिए।

Write a comment ...

Write a comment ...