मुख्य कलाकार - यामी गौतम(नैना जायसवाल)
अतुल कुलकर्णी (जावेद खान)
नेहा धूपिया (एसीपी कैथरीन अलवेज)
डिंपल कपाड़िया (पीएम माया राजगुरु)
करवीर शर्मा (रोहित मिरचनदानी)
माया शराव(शालीनी गुहा)
बोलोरामदास(गोवकर)
IMDB Rating-7.8/10
Release Date- 17 feb 2022
फिल्म की कहानी
अ थर्स - डे फिल्म की पूरी कहानी एक प्ले स्कूल के टीचर नैना जयसवाल (यामी गौतम) के चारों ओर घूमती रहती है। फिल्म में सस्पेंस और ड्रामा तब शुरू होता है जब वह अपने बर्थडे के दिन 16 बच्चों को प्ले स्कूल में हास्टेज कर लेती हैं। वह पुलिस को सारे बच्चों को मारने की धमकी देकर अपनी एक- एक डिमांड पूरा करने की मांग करती है।
वह अपनी पहले 5 करोड़ रुपये की मांग कर एक बच्चे को छोड़ने की बात कहती है फिर वह अन्य बच्चों की रिहाई के लिए पहले प्रधानमंत्री माया राजगुरु से फोन पर बात करती हैं और बाद में प्रत्यक्ष बात करने की डिमांड करती है।
फिल्म में नैना जायसवाल का चरित्र एक अच्छे और बच्चों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील और लगाव रखने के रूप में रूपांतरित किया गया है फिर वह ऐसा क्यों कर रही है?
यह जानने के लिए आपको फिल्म जरूर देखनी चाहिए।
कलाकारों की अदाकारी
फिल्म की मुख्य भूमिका निभाने वाली यामी गौतम ने सनम रे और काबिल जैसे फिल्मों में तो शानदार अभिनय किया ही है इस फिल्म में भी वह अपनी एक्टिंग का दम दिखाने में पीछे नहीं रहीं हैं।फिल्म में कलाकार डिंपल कपाड़िया ने एक प्रधानमंत्री की भूमिका का शानदार निर्वहन किया है। अतुल कुलकर्णी का अपने गलती कर अफसोस करना और बच्चों के प्रति उनकी दयालुता का भाव एक पुलिस अफसर की छवि को सुधारने पर असर डालती है।
वहीं नेहा धूपिया बतौर महिला एसीपी कैथरीन गर्भवती होने के बावजूद समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को प्राथमिकता देना। फिल्म के माध्यम से एक सकारात्मक संदेश देता है कि महिलाएं समस्याओं के साथ होने के बावज़ूद भी किसी से कम नहीं हैं।
फिल्म अ थर्स डे की खासियत
भारत में रेप की समस्या और दोषियों के प्रति कोई फास्ट ट्रैक कोर्ट की कमी और सजा का प्रावधान बहुत देरी से होता है। मामले की एफआईआर और न्याय मिलने में पीड़ितों को दर दर भटकना पड़ता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर 16 मिनट में चार लड़कियों का रेप होता है जिसका जिक्र फिल्म में यामी गौतम ने भी किया है।
यह फिल्म सरकारी सिस्टम की कमियों को उभारने में बड़ी मदद करता है।
फिल्म की कमजोर कड़ी
एक तरफ फिल्म में रेप और पीड़िता को न्याय न मिल पाने जैसी समस्या का समाज को संदेश देना तो दूसरी तरफ नेहा धूपिया का बार-बार अपशब्दों का उच्चारण करना। हालांकि अब अपशब्दों का इस्तेमाल फिल्मों में सामान्यतः होने लगा है लेकिन फिल्म में अपशब्द का इस्तेमाल करना महिलाओं के सम्मान के लिये ठीक नहीं है। आजकल की फिल्मों में क्राइम सीन और खून खराबें का खूब इस्तेमाल हो रहा है। क्राइम - सीन का ज्यादा इस्तेमाल करना समाज में लोगों को क्राइम के प्रति भय
फिल्म का निर्देशन और विडियोग्राफी
फिल्म के लेखक और निर्देशक बेहजाद खंबाटा ने दर्शकों को फिल्म से बांधने की पूरी कोशिश की है। फिल्म में अंत तक सस्पेंस और ड्रामा बना रहा।
फिल्म में एक भी संगीत नहीं था और बैकग्राउंड म्यूजिक भी ज्यादा असरदार नहीं थी।
कैमरा मूवमेंट की बात करें तो बारिश के मूवमेंट को बहुत अच्छे से दर्शाया गया है और प्ले स्कूल के एकत्रित भीड़ का दृश्य फिल्म की कहानी से जोड़ने वाला था।
यह फिल्म क्यों देखना चाहिए?
फिल्म रेप की सजा निर्धारित करने जैसे एक गंभीर मसले की पैरवी करता है। इस फिल्म में रेप करने वाले दोषियों को फांसी की सजा का प्रावधान करने की भी मांग की जाती है।
समाज में यह वाद-विवाद का विषय है कि क्या फांसी की सजा देने से समाज में रेप जैसे दुर्भाग्यशाली घटनाएं कम हो जाएंगी या समाज को शिक्षित और सुरक्षा व्यवस्था को चौकन्ना और दुरूस्त करने से।
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